1. सोयाबीन
में 80-85 प्रतिशत फलियाँ पक जायें अथवा नीचे की पत्तियाँ गिर जायें तब शीघ्र कटाई
करें. खलिहान में 5-8 दिन फलियों को सुखाकर गहाई करें.. बीज को अच्छी तरह सुखा कर
स्वच्छ भंडार गृह अथवा पात्रों में रखें.
2. खलिहान
में गहाई के समय थ्रेशर के ठीक सामने एवं उड़ावनी के बाद गिरने वाले तने के टुकड़ॉ में
चक्रक भृंग की इल्ली सुषुप्ता अवस्था में रह्ती है. इन टुकड़ों को एकत्रित कर जला
दें.
3. रबी
की फसल हेतु किसी भी संस्था अथवा द्कान से आदान खरीदते समय पक्की रसीद अवश्य
प्राप्त करें.
4. सभी
बीजों का अंकुरण परीक्षण कर अंकुरण प्रतिशत ज्ञात करें तथा उचित दवा से बीजोपचार
करके ही बोनी करें.
5. अक्टूबर
के प्रथम सप्ताह में अलसी की उन्नतशील प्रजातियों जे.एल.एस 9 और जे..एल.एस. 27 की
बोनी करें.
6. अक्टूबर
मे दूसरे सप्ताह में मसूर एवं हरी फली हेतु मटर की बोनी करें.
7. अक्टूबर
के दूसरे एवं तीसरे सप्ताह में चने की बोनी करें.
8. मृदा
परीक्षण करी6ए तथा मृदा परीक्षण की रपट के अनुसार खाद एवं ऊर्वरक का उपयोग करें.
9. बारानी
क्षेत्र में प्रारम्भिक ऊर्वरकों का उपयोग अवश्य करें.
10. मृदा
के अच्छे स्वास्थ्य हेतु गोबर की खाद, नाडेप खाद, केंचुआ खाद जैसी कार्बनिक खादों
का प्रयोग अवश्य करें.
11. सभी
दलहनी फसलों के बीजों को राईज़ोबियम कल्चर एवं पी.एस.बी. से उपचारित करें. साथ ही 8
किलो स्लफर प्रति एकड़ अवश्य डालें.
12. नये
रोपित पौधों के चारों ओर थाला बनाकर हल्की सिंचाई करें तथा थालों की गुड़ाई करें.
13. पुराने
पौधों को को उचित आकार देने के लिये शाखाओं की कटाई छँटाई करें.
14. लहसुन
की उन्नतशील प्रजाति जी-282 की बोनी करें तथा 20 किलो सल्फर प्रति एकड़ डालें.