Tuesday, September 29, 2015

धान एवं अरहर की पौध सुरक्षा

डॉ.अखिलेश कुमार
मो. 09424744455
धान में भूरा धब्बा एवं झुलसा रोग के नियंत्रण हेतु प्रोपीकोनाज़ॉल मिली लीटर प्रति लीटर पानी में अथवा ट्राईसाक्लोज़ॉल ग्राम प्रति 10 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें.
धान की फसलों में इल्ल्यिों का प्रकोप को नियंत्रित करने के लिए ट्राइज़ोफॉस 40 ई. सी. की 400 एम. एल. दवा या इन्डॉक्साकार्ब 15.8 ई. सी. की 200 एम. एल. दवा को 200 लीटर पानी में घोलकर प्रति एकड़ खेत में छिड़काव करें.
अरहर में पत्ती लपेटक एवं पत्ती काटने वाले कीटों को नियंत्रित करने के लिए ट्राइजोफॉस 40 प्रतिशत की 800 मिली दवा प्रति हेक्टेयर छिड़काव करें.

Friday, February 27, 2015

चने में चौड़ी पत्ती के नींदा की हाथ से निंदाई करें

चने में चौड़ी पत्ती के नींदा के नियंत्रण हेतु कभी भी नींदानाशी दवा का उपयोग न करें क्यों कि चना स्वयं चौड़ी पत्ती की फसल है. यदि आप चौड़ी पत्ती के नींदानाशी का उपयोग करेंगे तो चने की फसल को भी नुकसान होगा. ऐसी परिस्थिति में चौड़ी पत्ती के नींदा की हाथ से निंदाई करें.  

Saturday, January 10, 2015

जनवरी माह के प्रमुख कार्य

  1. गेहूँ में देर से बुबाई हेतु उपयुक्त प्रजाति एच.डी -.6528 एवं लोक-1 की बुवाई के दौरान प्रति एकड़ 2 किलोग्राम बीज दर बढ़ा दें. इस्की बुवाई 15-20 जनवरी  तक जहाँ पानी उपलब्ध है, की जा सकती है.
  2. दिसम्बर में बोई गई गेहूँ की फसल में पहला पानी बुवाई के 20-25 दिन बाद दें. प्रति एकड़ 20-25 किलो ग्राम यूरिया का भुरकाव सिंचाई के दूसरे दिन करें.
  3. चने की फसल में इल्ली के नियंत्रण हेतु क्लोरपायरीफॉस कीटनाशक का प्रयोग 20 ई.सी. दवा, 2 मिली-लीटर प्रति लीटर लानी में मिलाकर छिड़कें. आवश्यकता के अनुसार 15 दिन बाद दोबारा छिड़काव करें.
  4. अरहर को पाले से बचाने हेतु अरहर के खेत में एक सिंचाई करके खेत के आस-पास धुँआ करें.
  5. नवम्बर के माह में बोई गई गेहूँ की फसल में सिंचाई गाँठ बनते समय करें.
  6. अलसी में फली-छेदक कीट के नियंत्रण हेतु  1 मिली-लीटर इन्डोसल्फान दवा प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें.
  7. देर से बोई गई गेहूँ की फसल में संकरी पत्ती के नींदा के नियंत्रण हेतु बोनी के 20-25 दिन बाद 2 ग्राम आईसोप्रोट्युरॉन  दवा प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़कें जबकि चौड़ी पत्ती के नींदा अधिक होने पर 2-4 डी दवा 1.5 मिली-लीटर  प्रति लीटर पानी में मिलाकर बोनी के 30-25 दिन बाद छिड़कें.
  8. गेहूँ के खेत में पानी जमा न होने दें अन्यथा फसल पीली पड़ सकती है. इस प्रकार पीली पड़ी फसल से पानी निकालकर 20 किलोग्राम यूरिया प्रति एकड़ डालें.
  9. गेहूँ की फसल में कल्ले बनने की अवस्था में नत्रजन ऊर्वरक दें.
  10. पाले से रक्षा के लिये बागों की सिंचाई करें एवं नये पौधों को घास से ढकें.खेत के आस-पास धुँआ करें.
  11. आम के फलों को गिरने से रोकने के लिये एन.ए.ए. (नैप्थिलीन ऐसिटिक ऐसिड / प्लेनोफिक्स) का छिड़काव 2 मिली-लीटर प्रति लीटर पानी में मिलाकर करें.
  12. युकिलिप्टिस की नर्सरी तैयार करने के लिये बीजों की बुवाई जनवरी के अंतिम सप्ताह से फरवरी प्रथम सप्ताह तक करें.
  13. जहाँ सिंचाई की सुविधा हो वहाँ आम, अमरूद, आँवला इत्यादि फलदार पौधों को जनवरी-फरवरी में लगायें.
  14. पपीते को पाले से बचाने के लिये दक्षिण और पश्चिम दिशा की तरफ धुँआ तथा पौधों की सिंचाई करें.
  15. जनवरी में नींबू की टहनी से कलमी पौधे तैयार करने के लिये पैंसिल की मोटाई  की 12 सैंटी-मीटर लम्बी टहनी काटें. इस टहनी को 12 सैंटी-मीटर ज़मीन में गाड़ दें तथा 3 सैंटी-मीटर भाग ज़मीन के ऊपर रखें. पन्द्रह से बीस दिनों में इसमें अंकुरण होने लगेगा. इस समय इसकी तुरंत सिंचाई करें. इस प्रकार जुलाई में लगाने लायक पौधे तैयार हो जायेंगे.
  16. रबी फसलों में आवश्यकतानुसार सूक्ष्म पोषक तत्वों का छिड़काव करें.  
  17. टमाटर में सिंचाई के साथ नत्रजन ऊर्वरक दें.
  18. गेहूँ के आटे को बिना छाने रोटी बनायें.
  19. नौ भाग गेहूँ में एक भाग भुना हुआ सोयाबीन मिलाकर पिसवायें. आटे से रोटी, पूड़ी, हलुआ एवं लड़्डू इत्यादि बनाकर खायें.
  20. आहार में तिल एवं गुड़ शामिल करें.
  21. स्थानीय तौर पर उपलब्ध तथा मौसमी एवं हरी पत्तेदार सब्ज़ियाँ को खाने में अधिकाधिक शामिल करें.
  22. स्थानीय तौर पर उपलब्ध तथा मौसमी फल जैसे अमरूद, आँवला, बेर, पपीता, इत्यादि  का अधिकाधिक सेवन करें.
  23. तेवड़ा (बटरा) का सेवन किसी भी खाद्य पदार्थ के रूप में न करें.
  24. दूध एवं दुग्ध उत्पाद जैसे घी, खोवा, पनीर, खीर एवं रबड़ी इत्यादि को भोजन में शामिल करें. किंतु ठंड के मौसम में दही, छाछ एवं लस्सी जैसे खाद्य पदार्थों का सेवन न करें.  
  25. मौसमी सब्ज़ियों को गर्म पानी में पाँच मिनट रख कर धूप में सुखाकर पैक कर रखें. जब सब्ज़ी महँगी हो जायें तब इनका सेवन करें. इसी प्रकार सस्ती सब्ज़ियों का अचार बनाकर रखें. टमाटर से सॉस तथा केचप एवं अमरूद से जैली बनायें. आँवले में काला नमक और अजवाईन मिलाकर सुपारी, किसा तथा पूरे आँवले का शक्कर मे साथ मुरब्बा, रस तथा अचार बनाकर तथा पैक कर सुरक्षित रखें. गर्मी के मौसम में इनका सेवन करें. इस विषय पर अधिक जानकारी अथवा प्रशिक्षण प्राप्त करने के लिये आपके ज़िले में स्थित कृषि विज्ञान केन्द्र से सम्पर्क करें. 

Thursday, January 8, 2015

अक्टूबर माह के प्रमुख कृषि कार्य

1.    सोयाबीन में 80-85 प्रतिशत फलियाँ पक जायें अथवा नीचे की पत्तियाँ गिर जायें तब शीघ्र कटाई करें. खलिहान में 5-8 दिन फलियों को सुखाकर गहाई करें.. बीज को अच्छी तरह सुखा कर स्वच्छ भंडार गृह अथवा पात्रों में रखें.
2.    खलिहान में गहाई के समय थ्रेशर के ठीक सामने एवं उड़ावनी के बाद गिरने वाले तने के टुकड़ॉ में चक्रक भृंग की इल्ली सुषुप्ता अवस्था में रह्ती है. इन टुकड़ों को एकत्रित कर जला दें.
3.      रबी की फसल हेतु किसी भी संस्था अथवा द्कान से आदान खरीदते समय पक्की रसीद अवश्य प्राप्त करें.
4.      सभी बीजों का अंकुरण परीक्षण कर अंकुरण प्रतिशत ज्ञात करें तथा उचित दवा से बीजोपचार करके ही बोनी करें.
5.    अक्टूबर के प्रथम सप्ताह में अलसी की उन्नतशील प्रजातियों जे.एल.एस 9 और जे..एल.एस. 27 की बोनी करें.
6.      अक्टूबर मे दूसरे सप्ताह में मसूर एवं हरी फली हेतु मटर की बोनी करें.
7.      अक्टूबर के दूसरे एवं तीसरे सप्ताह में चने की बोनी करें.
8.      मृदा परीक्षण करी6ए तथा मृदा परीक्षण की रपट के अनुसार खाद एवं ऊर्वरक का उपयोग करें.
9.      बारानी क्षेत्र में प्रारम्भिक ऊर्वरकों का उपयोग अवश्य करें.  
10.  मृदा के अच्छे स्वास्थ्य हेतु गोबर की खाद, नाडेप खाद, केंचुआ खाद जैसी कार्बनिक खादों का प्रयोग अवश्य करें.
11.  सभी दलहनी फसलों के बीजों को राईज़ोबियम कल्चर एवं पी.एस.बी. से उपचारित करें. साथ ही 8 किलो स्लफर प्रति एकड़ अवश्य डालें.
12.  नये रोपित पौधों के चारों ओर थाला बनाकर हल्की सिंचाई करें तथा थालों की गुड़ाई करें.
13.  पुराने पौधों को को उचित आकार देने के लिये शाखाओं की कटाई छँटाई करें.
14.  लहसुन की उन्नतशील प्रजाति जी-282 की बोनी करें तथा 20 किलो सल्फर प्रति एकड़ डालें.